श्राद्ध कर्म हिन्दू धर्म की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र धार्मिक क्रिया है, जो मृत आत्माओं की शांति और तृप्ति के लिए की जाती है। "श्राद्ध" शब्द "श्रद्धा" से बना है, जिसका अर्थ है – श्रद्धा और भक्ति भाव से किया गया कार्य। यह कर्म विशेष रूप से पितरों (पूर्वजों) के निमित्त किया जाता है, ताकि उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद दे सकें।
श्राद्ध कर्म की प्रक्रिया में ब्राह्मणों को भोजन कराना, तर्पण (जल अर्पण), और पिंडदान शामिल होता है। यह कर्म विशेष रूप से श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) में किया जाता है, जो भाद्रपद अमावस्या से अश्विन अमावस्या तक होता है। गया, काशी, प्रयाग और हरिद्वार जैसे तीर्थस्थलों पर श्राद्ध करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है, लेकिन गया धाम को सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना गया है।
श्राद्ध कर्म करने से पितृ दोष समाप्त होता है, पूर्वजों की आत्मा को संतोष मिलता है, और परिवार में सुख, समृद्धि व शांति का आगमन होता है। यह कर्म व्यक्ति के पारिवारिक, आध्यात्मिक और धार्मिक कर्तव्यों का प्रतीक है और आत्मिक उन्नति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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