पिंडदान हिन्दू धर्म की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पुण्यदायी धार्मिक क्रिया है, जिसे पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए किया जाता है। यह कर्म विशेष रूप से गया धाम में किया जाता है, जिसे पिंडदान का सर्वोच्च स्थल माना गया है। "पिंड" का अर्थ होता है शरीर अथवा गोलाकार आहार का अंश, जो चावल, तिल और जौ से बनाया जाता है, और "दान" का अर्थ है समर्पण। यह प्रक्रिया मृत आत्माओं को अर्पित की जाती है ताकि उन्हें अगला जन्म प्राप्त करने से पहले आत्मिक शांति और मोक्ष मिल सके।
पिंडदान प्रायः पुत्र या परिवार के सदस्य द्वारा श्राद्ध पक्ष में या किसी विशेष तिथि पर किया जाता है। माना जाता है कि पिंडदान से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह कर्मकांड ब्राह्मण पुरोहितों के माध्यम से मंत्रोच्चारण और वैदिक विधि के अनुसार सम्पन्न किया जाता है।
गया, वाराणसी और हरिद्वार जैसे तीर्थस्थल पिंडदान के लिए प्रसिद्ध हैं, परंतु गया धाम को विशेष रूप से मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना गया है। पिंडदान आत्मीय श्रद्धा, पारिवारिक कर्तव्य और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है।
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